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बिहार का जनादेश फिर नीतीश-मोदी की जोड़ी के नाम

राज्य बिहार

Posted by admin on 2025-11-14 14:03:04

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बिहार का जनादेश फिर नीतीश-मोदी की जोड़ी के नाम

बूथ से लेकर सीट तक… तिकड़म में एनडीए भारी, नहीं आई महागठबंधन की बारी

बिहार का जनादेश फिर नीतीश-मोदी की जोड़ी के नाम


पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि चुनावी रणनीति, विकास योजनाओं की विश्वसनीयता और सामाजिक समूहों की सुनियोजित गोलबंदी ही किसी भी दल की जीत के मुख्य आधार होते हैं। बिहार की जनता ने जिस तरह से एनडीए के पक्ष में वोट की बारिश की, उसने इस गठबंधन को सत्ता की दहलीज पर लगभग पहुँचा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की संयुक्त अपील, योजनाओं की निरंतरता और स्पष्ट विकास एजेंडा ने मिलकर महागठबंधन के समीकरणों को ध्वस्त कर दिया। एनडीए का नारा—‘25 से 30, फिर से नीतीश’—जनता के बीच सिर्फ प्रचार नहीं रहा; यह उनके भरोसे और अनुभव पर आधारित निर्णय बन गया। आइए जानते हैं वे प्रमुख कारण जिनसे एनडीए ने बूथ से लेकर सीट तक चुनावी मैदान पर मजबूती से पकड़ बनाई और महागठबंधन को हाशिये पर धकेल दिया।


नीतीश की अस्वस्थता का मुद्दा फ्लॉप, जनमत ने कहा—यही नेतृत्व ठीक

चुनाव से पहले विपक्ष ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अस्वस्थता को बड़ा मुद्दा बनाया। महागठबंधन के नेताओं ने इसे बार-बार उछाला और युवा नेतृत्व को विकल्प के रूप में पेश करने की कोशिश की। लेकिन जनता ने इस दावे को खारिज कर दिया। चुनाव प्रचार के दौरान नीतीश कुमार की योजनाओं की निरंतरता, प्रशासनिक अनुभव और राज्य में शांति-व्यवस्था बनाए रखने की क्षमता जनता के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण साबित हुई। मतदाताओं ने साफ संदेश दिया कि नीतीश कुमार के नेतृत्व पर भरोसा अब भी कायम है, और इसे विपक्ष का बनाया आख्यान नहीं हिला सका।


चार करोड़ लाभुक—एनडीए का चुनावी किला

बिहार में एनडीए सरकार ने पिछले वर्षों में लगभग चार करोड़ लाभुकों का मजबूत आधार तैयार किया। यह समूह योजनाओं का सीधे-सीधा लाभ पाने वाला वह वोट बैंक था जिसने मतदान के दिन अपनी पसंद बिना किसी झिझक के जाहिर कर दी। यह संख्या ही एनडीए की विजय यात्रा की नींव बन गई।मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना, वृद्धावस्था पेंशन, छात्रवृत्ति योजनाएँ, हर घर नल का जल, हर घर बिजली—इन सबने एक व्यापक लाभार्थी वर्ग तैयार किया जो एनडीए को स्थिर और विश्वसनीय शासन का प्रतीक मानता रहा है। चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, यह लाभुक समूह महागठबंधन के किसी भी जातीय समीकरण पर भारी पड़ा।


महिलाओं की निर्णायक भूमिका—‘आधी आबादी’ ने फिर दी नीतीश को जीत 
बिहार चुनाव 2025 में महिलाओं की भूमिका ने परिणाम पर निर्णायक असर डाला। नीतीश सरकार द्वारा महिलाओं के खातों में 10,000 रुपये की वित्तीय सहायता, जीविका समूहों की मजबूती, आशा-ममता का बढ़ा मानदेय और विद्यालय छात्रवृत्ति योजनाएँ महिलाओं की प्राथमिकताओं से सीधे जुड़ी थीं।  इसके साथ—

शराबबंदी
पंचायत और नगर निकाय में 50% आरक्षण
सरकारी नौकरियों में 35% आरक्षण

ने महिलाओं के बीच नीतीश के लिए विश्वास की मजबूत दीवार खड़ी की। परिणाम यह हुआ कि महिलाओं के वोट बक्सों ने एनडीए के पक्ष में अभूतपूर्व झुकाव दिखाया, जिसने कई सीटों पर निर्णायक अंतर पैदा किया।


125 यूनिट फ्री बिजली—इकॉनॉमिक रिलिफ का बड़ा दांव

चुनाव से ठीक पहले नीतीश सरकार द्वारा 125 यूनिट फ्री बिजली देने की घोषणा ऐसा तोहफा साबित हुआ जिस पर जाति, धर्म या क्षेत्र का कोई असर नहीं पड़ा। यह राहत सीधे-सीधे उन लाखों परिवारों तक पहुंची जिनकी घरेलू आर्थिक परिस्थितियों में बिजली बिल बड़ा हिस्सा होता है। यह घोषणा न केवल लोकप्रिय हुई, बल्कि जनता के लिए तत्काल राहत देने वाले कदम के रूप में उभरी। महागठबंधन इस प्रभाव को कम करने के लिए समय रहते वैकल्पिक एजेंडा नहीं दे पाया, और यह फायदा सीधे एनडीए की झोली में चला गया।

पाँच पांडव मॉडल—सोशल इंजीनियरिंग में एनडीए भारी

इस चुनाव में एनडीए के घटक दल—

जदयू, भाजपा, हम, रालोमो और लोजपा(रामविलास)

को मीडिया और विश्लेषकों ने ‘पाँच पांडव’ की संज्ञा दी। इन दलों का अलग-अलग आधार वोट था, और इनका संयोजन सामाजिक समीकरण में महागठबंधन की तुलना में अधिक सटीक बैठा।  बिहार की राजनीति जाति-आधारित समीकरणों पर चलती है। ऐसे में यह पाँच दल मिलकर यादव-भूमिहार-कोइरी-दलित-अति पिछड़ा सहित बड़े सामाजिक वर्गों पर प्रभावी पकड़ रखते थे। महागठबंधन के जातीय गठबंधन की तुलना में एनडीए का सोशल इंजीनियरिंग मॉडल कहीं ज्यादा संतुलित और भरोसेमंद साबित हुआ।


चुनावी बूथ प्रबंधन—एनडीए की संगठित संरचना का असर

एनडीए ने चुनावी प्रबंधन में शुरुआत से ही बढ़त बना ली। बूथ लेवल पर भाजपा और जदयू के कैडर ने अभूतपूर्व तालमेल दिखाया। इसके उलट महागठबंधन के कई उम्मीदवारों ने शिकायत की कि उनके बूथ एजेंट गायब रहे या वक्त पर नहीं पहुँचे।

इसके दो बड़े प्रभाव दिखे—

एनडीए का वोट सुचारु रूप से कैप्चर होता गया

महागठबंधन का संभावित वोट क्षरण का शिकार हुआ

दूसरी ओर, एनडीए ने सीट शेयरिंग समय से पहले स्पष्ट कर दी, जबकि महागठबंधन में इस मुद्दे पर लगातार खींचतान चलती रही। इससे एनडीए को रणनीतिक बढ़त मिली।


उम्मीदवार चयन—संगठन और स्पष्टता में एनडीए मजबूत

एनडीए बिहार चुनाव का पहला ऐसा गठबंधन बना जिसने 100% उम्मीदवारों की सूची सबसे पहले जारी कर दी। इससे उन्हें प्रचार शुरू करने का समय मिला और स्थानीय कार्यकर्ताओं को रणनीति बनाने का अवसर भी। महागठबंधन इस मोर्चे पर बुरी तरह पिछड़ गया। कई सीटों पर अंत तक स्थिति अस्पष्ट रही। कहीं-कहीं दोस्ताना संघर्ष के रूप में महागठबंधन के ही दो दल आमने-सामने आ गए। इसका नकारात्मक संदेश जनता तक गया और सीट हानि में तब्दील हो गया।

विद्रोहियों को साधने की रणनीति—एनडीए की चतुराई

एनडीए ने जिन जगहों पर विद्रोह और असंतोष हुआ, उन्हें चुनाव से पहले ही मैनेज कर लिया। तारापुर जैसी सीटों पर वीआईपी के उम्मीदवार को भाजपा ने साथ लेकर सीट को बचा लिया। यह रणनीति निर्णायक साबित हुई और कई सीटों पर नुकसान होने से बच गया।


कांग्रेस की कमजोरी—महागठबंधन की सबसे बड़ी दरार

कांग्रेस इस चुनाव में महागठबंधन की कमजोर कड़ी साबित हुई। जहां प्रधानमंत्री मोदी ने लगातार सभाएँ कीं और भाजपा ने बूथ स्तर पर संगठन को सक्रिय रखा, वहीं राहुल गांधी की उपस्थिति काफी कम रही।

कांग्रेस की निष्क्रियता से—

सवर्ण वोट

दलित वोट

शहरी युवा वोट

जो महागठबंधन की उम्मीद थे, वे अंततः एनडीए की ओर खिसकते चले गए। कांग्रेस न तो अपने कैडर को सक्रिय कर पाई, न ही महागठबंधन के समन्वय को।

2025 के बिहार चुनाव में जनता ने जातीय राजनीति के पार जाकर विकास, स्थिर शासन और लाभकारी योजनाओं पर मुहर लगाई है। एनडीए ने बूथ प्रबंधन से लेकर उम्मीदवार चयन तक, योजनाओं से लेकर सामाजिक गोलबंदी तक हर स्तर पर संगठित और रणनीतिक रूप से मजबूत प्रदर्शन किया। महागठबंधन जहाँ आंतरिक टकराव, कमज़ोर प्रबंधन और असंगठित संदेश का शिकार रहा, वहीं एनडीए ने यह चुनाव चुनावी प्रबंधन, जनसमर्थन और विकास मॉडल के सहारे निर्णायक रूप से अपने नाम कर लिया।

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