Posted by admin on 2025-11-14 17:30:04
कांग्रेस पर अत्यधिक भरोसा बना महागठबंधन की सबसे बड़ी चूक
पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम कई राजनीतिक समीकरणों को हिला देने वाला रहा। तेजस्वी यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन को जो जीत का विश्वास था, वह पूरी तरह ध्वस्त हो गया। सीटों के लिहाज से महागठबंधन की यह सबसे खराब प्रदर्शन में से एक माना जा रहा है। हालांकि एक दिलचस्प आंकड़ा यह भी है कि वोट प्रतिशत के मामले में आरजेडी नंबर वन रही, जबकि बीजेपी दूसरे नंबर पर पहुंच गई। राजनीति के जानकार मानते हैं कि तेजस्वी यादव ने लालू यादव की कई महत्वपूर्ण राजनीतिक सीखों को नज़रअंदाज़ कर दिया और यही रणनीतिक भूल महागठबंधन की हार की सबसे बड़ी वजह बनी।
कांग्रेस को 61 सीट देना पड़ा महंगा
बिहार में जातीय समीकरणों की राजनीति करने में माहिर मानी जाने वाली आरजेडी इस बार रणनीतिक स्तर पर चूक गई। सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को दिया गया सीटों का आवंटन रहा। लालू यादव ने पहले ही चेताया था कि कांग्रेस की संगठनात्मक स्थिति बेहद कमजोर है, लेकिन फिर भी महागठबंधन ने कांग्रेस को 61 सीटें सौंप दीं। यह वही गलती थी जो 2020 के चुनाव में भी हुई थी, जब कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थीं और वह केवल 19 ही जीत पाई थी।
इस बार उसका प्रदर्शन और नीचे चला गया। ताज़ा रुझानों के अनुसार, कांग्रेस केवल 1 सीट पर बढ़त बना पाई है। विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का वोट बैंक लगभग खत्म हो चुका है और वह बिहार में ‘परजीवी पार्टी’ की तरह गठबंधन पर निर्भर हो गई है। नतीजतन, जिन 61 सीटों पर कांग्रेस उतरी, वहां का बहुमूल्य वोट महागठबंधन के पक्ष में समेकित नहीं हो पाया और कई सीटें एनडीए की झोली में चली गईं।
एनडीए की प्रचंड वापसी: 2010 का रिकॉर्ड टूटा
बीजेपी-जेडीयू ने मिलकर दिखाया मजबूत जनाधार
चुनाव आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध रुझानों के अनुसार, इस बार बीजेपी 96 और जेडीयू 84 सीटों पर आगे है। लोजपा 19 सीटों पर, जबकि आरजेडी केवल 24 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है। 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को कुल 206 सीटें मिली थीं, जिसे इस बार का प्रदर्शन पार करता दिख रहा है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, एनडीए 208 सीटों के आसपास बढ़त लेकर इतिहास रचने की ओर बढ़ रहा है। महागठबंधन की स्थिति बेहद खराब है और उसे कुल मिलाकर 28 सीटों के आसपास सीमित होते देखा जा रहा है। स्पष्ट है कि संगठन, नेतृत्व और रणनीति—तीनों मोर्चों पर एनडीए महागठबंधन पर भारी पड़ा।
आरजेडी वोट प्रतिशत में सबसे आगे
भले ही सीटों के लिहाज़ से आरजेडी पिछड़ गई हो, लेकिन वोट प्रतिशत के मामले में उसने बीजेपी को पीछे छोड़ दिया।
आरजेडी को – 22.73% वोट
बीजेपी को – 20.80% वोट
जेडीयू को – 18.83%
कांग्रेस को – 8.56%
वोट प्रतिशत को देखकर राजनीतिक विशेषज्ञों ने कहा कि आरजेडी के पास जनाधार तो है, लेकिन कांग्रेस से गठबंधन और प्रत्याशियों के चयन में की गई चूक उसकी सियासी नींव को कमजोर कर गई।
महिलाओं की बढ़ी भूमिका: 10% अधिक मतदान ने दिलाई स्थिरता को बढ़त
शराबबंदी और महिलाओं के हितों वाली योजनाओं का असर
इस चुनाव में महिलाओं की भागीदारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची। दो चरणों में पुरुषों की तुलना में 4,34,000 अधिक महिलाओं ने वोट डाला। मतदान प्रतिशत में महिलाओं का औसत 71.6%, जबकि पुरुषों का 62.8% रहा। महिलाओं का यह रुझान एनडीए के लिए निर्णायक साबित हुआ। नीतीश कुमार की शराबबंदी, जीविका दीदियों को आर्थिक सहयोग और महिला रोजगार कार्यक्रमों ने एक स्थिर वोट बैंक तैयार किया है। मुख्यमंत्री रोजगार योजना के तहत महिलाओं के खातों में सीधे 10,000 रुपये भेजे गए, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिला। दूसरी ओर, आरजेडी का 15 साल का जंगलराज आज भी महिलाओं की स्मृति में ताज़ा है। सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का मुद्दा महिलाओं के मतदान निर्णय में अहम रहा और यह विपक्ष के खिलाफ भारी पड़ा।
महागठबंधन की हार से निकला निष्कर्ष
इन चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया कि नेतृत्व जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही गठबंधन की संरचना भी। महागठबंधन ने कांग्रेस को रणनीतिक सौदे में बड़ी भूमिका देकर जो जोखिम उठाया था, वही उसकी सबसे भारी चूक साबित हुई। आरजेडी के मजबूत जनाधार के बावजूद, कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन ने पूरा समीकरण उलट दिया। तेजस्वी यादव के लिए यह परिणाम एक बड़ा सबक है कि गठबंधन राजनीति में सीट बंटवारे का निर्णय केवल भरोसे पर नहीं, बल्कि जमीनी हकीकत पर आधारित होना चाहिए। बिहार के मतदाताओं ने इस बार स्थिरता, महिलाओं की सुरक्षा और विकास के मुद्दों पर वोट दिया—और यही वजह रही कि एनडीए ने एक बार फिर मजबूत वापसी की।
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