Posted by admin on 2025-11-15 18:09:28
देश की आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता ने जितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उतनी ही महत्ता उसने आजादी के बाद भी समय-समय पर सिद्ध की है। पत्रकारिता केवल सूचना का माध्यम नहीं रही, बल्कि समाज सुधार, जनजागरण और लोकतंत्र की मजबूती का आधार स्तंभ बनी। परन्तु बदलते समय, तकनीक और सामाजिक-राजनीतिक दबावों के बीच पत्रकारिता का स्वरूप चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। अत्याचार, भ्रष्टाचार, दुराचार और अपराध जितनी तेज़ी से बढ़ रहे हैं, पत्रकारों पर हमले भी उतने ही बढ़े हैं।
मजहूर है कि मीडिया पर वही लोग हमला करते हैं, जो समाज की बुराइयों में डूबे हुए हैं। इनके काले कारनामे जब पत्रकारिता के दर्पण में उजागर होते हैं तो वे बौखला जाते हैं और प्रेस तथा पत्रकारों पर हमला करवाते हैं। दुर्भाग्य यह कि कई बार शासन-प्रशासन भी ऐसे लोगों के प्रति नरमी बरतता है। मामले दर्ज होते हैं, पर समाधान कम ही दिखता है। यह स्थिति लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस पत्रकारों के लिए केवल उत्सव का दिन नहीं, बल्कि स्वयं को पुनः समर्पित करने का अवसर है—यह याद दिलाने का समय कि पत्रकारिता एक जिम्मेदारी है, सिर्फ पेशा नहीं।
लेकिन कभी-कभी स्वार्थ, दबाव और लाभ-हानि को देखते हुए मीडिया समतल दर्पण बनने के बजाय उत्तल या अवतल दर्पण की तरह दृष्टि को विकृत करने लगता है। खोजी पत्रकारिता के नाम पर पीली और नीली पत्रकारिता का बढ़ना, तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना, सनसनी बेचने की प्रवृत्ति और गलत सूचना फैलाने के मामले—ये सब पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों के विपरीत हैं।
भारतीय प्रेस परिषद ने भी अपनी कई रिपोर्टों में कहा है कि प्रेस के खिलाफ शिकायतें बढ़ रही हैं, जो चिंता का विषय है।
समाचार विचारों की जननी होती है, परंतु विचारों पर आधारित समाचार पत्रकारिता के लिए अभिशाप बन जाते हैं। समाज के सामने प्रस्तुति का यह अंतर बड़ा भ्रम पैदा करता है।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता एक मिशन थी। आपातकाल के दौरान भी प्रेस ने संघर्ष कर लोकतंत्र के लिए आवाज बुलंद की। परन्तु धीरे-धीरे पत्रकारिता व्यवसायीकरण के दौर में प्रवेश कर गई। आज खबर से अधिक खबर देने वाला, लेख से अधिक लेख लिखने वाला और तथ्य से अधिक व्यक्ति की पहचान मायने रखने लगी है। कुछ लोग पत्रकारिता को सिर्फ अपनी छवि बनाने का माध्यम मानते हैं। छद्म नाम से लेखन, पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग और प्रचारात्मक पत्रकारिता ने पत्रकारिता की विश्वसनीयता को प्रभावित किया है।
मीडिया समाज को प्रभावित करता है, और कई बार समाज भी मीडिया को प्रभावित करता है। यह एक पारस्परिक प्रक्रिया है। परंतु जब मीडिया अपनी मूल जिम्मेदारी भूलकर केवल प्रभाव के दबाव में काम करने लगे, तब लोकतंत्र कमजोर होता है।
आज सूचना के साथ-साथ भ्रामक सूचना और दुष्प्रचार भी तेजी से फैल रहे हैं। ऐसे समय में मीडिया की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा जिम्मेदारीपूर्ण हो जाती है। पत्रकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि वे सत्य, तथ्य और नैतिकता के साथ समझौता न करें।
राष्ट्रीय प्रेस दिवस हमें यही याद दिलाता है कि प्रेस केवल सत्ता का प्रहरी नहीं, बल्कि लोकतंत्र का विश्वास है।
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