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दशहरा: सत्य की जीत और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

धर्म / अध्यात्म

Posted by admin on 2025-10-01 17:48:12

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दशहरा: सत्य की जीत और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

भारत त्योहारों का देश है, जहां हर त्योहार न केवल धार्मिक भावना को प्रकट करता है, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक विविधता और नैतिक मूल्यों का संदेश भी देता है। इन्हीं प्रमुख पर्वों में एक है दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व हर वर्ष अश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है और इसे असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक माना जाता है।

दशहरा का ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व अत्यंत गहरा है। रामायण के अनुसार, यह वही दिन है जब भगवान श्रीराम ने लंका के राजा रावण का वध कर अपनी पत्नी माता सीता को उसके बंदीगृह से मुक्त कराया था। रावण दस सिर वाला राक्षस था, जो अत्याचार और अहंकार का प्रतीक था, जबकि राम सत्य, धर्म और मर्यादा के प्रतिरूप माने जाते हैं। रावण वध के माध्यम से यह पर्व यह संदेश देता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः जीत सत्य और धर्म की ही होती है।


शब्दों में छिपा प्रतीक

'दशहरा' शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है — 'दस' और 'हारा'। दस का अर्थ है रावण के दस सिर और हारा का अर्थ है पराजित। यानी दशहरा का तात्पर्य है "दस सिरों वाले रावण की पराजय"। इसे 'विजयादशमी' भी कहा जाता है — विजय + दशमी — अर्थात दशमी तिथि पर प्राप्त हुई विजय।


शक्ति और शौर्य की पूजा का पर्व

भारतवर्ष में यह पर्व शस्त्र पूजन, शौर्य प्रदर्शन और नवीन कार्यों के शुभारंभ के लिए भी जाना जाता है। इसे शक्ति की आराधना के रूप में देखा जाता है। इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर जैसे दैत्य का वध कर देवताओं को विजय दिलाई थी। इसलिए इस पर्व को शक्ति की उपासना और धर्म की स्थापना के रूप में भी मनाया जाता है।


देशभर में विविध रूपों में मनाया जाता है दशहरा

भारत की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सांस्कृतिक विविधता है। हर राज्य, हर क्षेत्र इस पर्व को अपने ढंग से मनाता है, लेकिन भावना एक ही रहती है — बुराई पर अच्छाई की जीत।


उत्तर भारत: रामलीला और रावण दहन

उत्तर भारत में दशहरा परंपरागत रूप से रामलीला के समापन के रूप में मनाया जाता है। कई दिनों तक चलने वाली रामलीला में भगवान राम के जीवन का मंचन किया जाता है, culminating in the रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों के दहन के साथ। यह दृश्य देखने हजारों लोग मैदानों में एकत्र होते हैं। यह परंपरा केवल मनोरंजन नहीं बल्कि नैतिक शिक्षा और सामाजिक चेतना का भी माध्यम बनती है।


बंगाल, ओडिशा और असम: दुर्गा पूजा का उत्सव

इन पूर्वी राज्यों में दशहरा को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। पांच दिन तक चलने वाले इस भव्य आयोजन में देवी दुर्गा को खूबसूरत पंडालों में विराजित किया जाता है। प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा बनाए गए भव्य मूर्तियों की पूजा की जाती है। विजया दशमी के दिन देवी का विसर्जन होता है, और महिलाएं सिंदूर खेला करती हैं। पुरुष आपस में कोलाकुली (गले मिलना) करते हैं और शुभकामनाएं देते हैं।


महाराष्ट्र: ज्ञान और आरंभ का पर्व

महाराष्ट्र में नवरात्रि के नौ दिन देवी दुर्गा को समर्पित होते हैं, जबकि दसवें दिन मां सरस्वती की वंदना की जाती है। इसे विद्या आरंभ के लिए अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। लोग इस दिन नवीन कार्य, घर खरीद, या शुभ कार्यों की शुरुआत करते हैं। यहां सिलंगण नामक परंपरा के अंतर्गत समाजिक स्तर पर मेलजोल बढ़ाया जाता है।


कर्नाटक: मैसूर दशहरा की भव्यता

कर्नाटक में दशहरे की धूम कुछ और ही होती है, विशेषकर मैसूर में। मैसूर का दशहरा एक राजसी परंपरा है। मैसूर महल को रोशनी से सजाया जाता है और सज्जित हाथियों का भव्य जुलूस निकाला जाता है। टॉर्च लाइट के संग नृत्य, संगीत, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।


हिमाचल प्रदेश: कुल्लू दशहरा की अनूठी छटा

कुल्लू दशहरा हिमाचल की एक विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान है। यहां देवी-देवताओं की सजी हुई पालकियां निकाली जाती हैं। ढोल-नगाड़ों और पारंपरिक नृत्य के साथ देव रथ यात्रा होती है। खास बात यह है कि यहां रावण दहन नहीं होता, बल्कि पर्व का फोकस लोक देवता रघुनाथ जी की वंदना पर रहता है।


बस्तर (छत्तीसगढ़): देवी दंतेश्वरी की आराधना

बस्तर में दशहरा की धार्मिक भावना कुछ अलग है। यहां इसे राम-रावण युद्ध से न जोड़ते हुए मां दंतेश्वरी की पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व पूरे 75 दिन तक चलता है, जिसकी शुरुआत श्रावण अमावस्या से होती है और समापन अश्विन शुक्ल त्रयोदशी को होता है। यह परंपरा 15वीं शताब्दी से चली आ रही है।


गुजरात: गरबा और डांडिया की रंगीन रात्रियां

गुजरात में दशहरे की रातें गरबा और डांडिया के नाम होती हैं। कुंवारी लड़कियां देवी के प्रतीक रंगीन घड़े को सिर पर रखकर गरबा करती हैं। पुरुष और महिलाएं रंग-बिरंगे कपड़ों में डांडिया रास में भाग लेते हैं। यह पर्व सांस्कृतिक रंगों से भरपूर होता है और संपूर्ण समाज को एक सूत्र में बांधता है।


तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक: त्रिदेवी की पूजा

इन दक्षिणी राज्यों में दशहरा के नौ दिन तीन देवियों — लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा को समर्पित होते हैं। पहले तीन दिन धन की देवी लक्ष्मी, अगले तीन दिन विद्या की देवी सरस्वती और अंतिम तीन दिन शक्ति की देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। पूजा स्थल फूलों और दीपों से सजाए जाते हैं और मिठाइयों का आदान-प्रदान होता है।


कश्मीर: खीर भवानी की उपासना

कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय नवरात्रि के नौ दिन उपवास रखता है और माता खीर भवानी के दर्शन करता है। परंपरा के अनुसार, विजय मुहूर्त में तारा उदय के समय किया गया पूजन सभी कार्यों में सफलता दिलाने वाला होता है।


दशहरा का समसामयिक महत्व

आज के समय में जब सामाजिक बुराइयों, नैतिक पतन और अन्याय की घटनाएं बढ़ रही हैं, दशहरे का यह संदेश और भी प्रासंगिक हो गया है। यह पर्व हमें सच्चाई, नैतिकता, साहस और कर्तव्यनिष्ठा की राह पर चलने की प्रेरणा देता है। रावण केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि हमारे भीतर की बुराइयों का प्रतीक भी है — अहंकार, लोभ, ईर्ष्या, घृणा। दशहरा हमें इन्हें पहचानने और नष्ट करने की प्रेरणा देता है।

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