Posted by admin on 2025-09-25 10:24:10
भारतीय टैलेंट पर सबसे बड़ा असर
नई दिल्ली। अमेरिका में काम करने का सपना देखने वाले भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए बुरी खबर आई है। ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा पर बड़ा फैसला लेते हुए नई आवेदन फीस 1 लाख डॉलर (करीब 83 लाख रुपये) कर दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम से न सिर्फ भारतीय IT और इंजीनियरिंग प्रोफेशनल्स पर गहरा असर पड़ेगा, बल्कि अमेरिकी कंपनियों की रीढ़ माने जाने वाले टेक सेक्टर को भी बड़ा झटका लगेगा।
जेपी मॉर्गन की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, नई फीस नीति से हर महीने करीब 5,500 नौकरियां प्रभावित हो सकती हैं। यानी साल भर में 65,000 से ज्यादा रोजगार विदेशी टैलेंट से छिन सकते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इस फैसले का सबसे बड़ा शिकार भारतीय होंगे, क्योंकि 2024 में जितने भी H-1B वीज़ा जारी किए गए थे, उनमें से 71% भारतीयों को मिले थे।
भारतीयों पर सबसे बड़ा असर
अमेरिकी डेटा साफ बताता है कि H-1B वीज़ा पर सबसे अधिक निर्भर भारतीय हैं। टेक सेक्टर, साइंस और टेक्निकल सर्विसेज जैसे क्षेत्र विदेशी इंजीनियर्स और डेवलपर्स के बिना अधूरे हैं। नई फीस सीधे तौर पर भारतीय टैलेंट के खिलाफ खड़ी कर दी गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि 83 लाख रुपये की फीस इतनी भारी है कि कई स्टार्टअप और मिड-लेवल कंपनियां इसे वहन नहीं कर पाएंगी। नतीजतन, भारत से आने वाले प्रोफेशनल्स की संख्या तेजी से घटेगी।
सिस्टम को "तोड़ने" जैसा कदम
रिवेलियो लैब्स की सीनियर इकॉनॉमिस्ट लुजैना अब्देलवाहेद ने कहा कि इतनी ज्यादा फीस बढ़ाना दरअसल H-1B सिस्टम को “तोड़ने” जैसा है। उन्होंने अनुमान जताया कि इस फैसले से हर साल करीब 1.40 लाख नौकरियां अमेरिकी कंपनियों से गायब हो सकती हैं। उनका कहना है कि अमेरिकी इकोनॉमी पहले से ही ठंडी पड़ चुकी है। पिछले तीन महीनों में औसतन सिर्फ 29,000 नई पेरोल नौकरियां जुड़ी हैं। ऐसे में अगर विदेशी टैलेंट पर ताला लगा दिया गया तो यह कंपनियों और टेक इंडस्ट्री दोनों के लिए विनाशकारी होगा।
अमेरिकी कंपनियों की चिंता
गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, अमेजन और मेटा जैसी कंपनियों का बड़ा हिस्सा भारतीय टैलेंट पर टिका है। इन कंपनियों के इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी विभागों में हजारों भारतीय काम कर रहे हैं। H-1B फीस की नई बाधा उन्हें महंगा पड़ सकती है। अमेरिकी कंपनियां पहले से ही लागत और हायरिंग संकट से जूझ रही हैं। नई पॉलिसी से उनका बोझ कई गुना बढ़ जाएगा। कंपनियों को अब तय करना होगा कि वे महंगी फीस चुका कर विदेशी टैलेंट रखें या घरेलू हायरिंग पर फोकस करें।
कानूनी चुनौती की तैयारी
कैलिफोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बॉन्टा ने इस नीति को मनमाना करार दिया है। उनका कहना है कि बिजनेस पर इस तरह की अनिश्चितता थोपना सही नहीं है। बॉन्टा ने संकेत दिया है कि अगर जरूरत पड़ी तो इस फैसले को अदालत में चुनौती दी जाएगी। उन्होंने कहा, “सरकार को कोई भी नीति बिना ठोस कारण और प्रक्रिया के लागू नहीं करनी चाहिए। यह न केवल विदेशी टैलेंट बल्कि अमेरिकी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा क्षमता को भी नुकसान पहुंचाएगा।”
अमेरिका की इकोनॉमी पर असर
फेडरल रिजर्व चेयरमैन जेरोम पॉवेल पहले ही कह चुके हैं कि अमेरिकी लेबर मार्केट कमजोर हो रहा है। लेबर डिमांड और सप्लाई दोनों गिर रहे हैं, और इसकी एक बड़ी वजह कम होता इमिग्रेशन है। अगर H-1B वीज़ा फीस इतनी महंगी कर दी गई तो विदेशी प्रोफेशनल्स का आना लगभग असंभव हो जाएगा। इसका सीधा असर अमेरिका की प्रोडक्टिविटी, इनोवेशन और ग्लोबल मार्केट में उसकी पकड़ पर पड़ेगा।
भारतीय IT सेक्टर के लिए झटका
भारत का IT सेक्टर अमेरिका पर काफी हद तक निर्भर है। हर साल हजारों इंजीनियर्स और टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स वहां जाकर काम करते हैं। नई पॉलिसी के कारण न सिर्फ उनके सपने टूटेंगे, बल्कि भारतीय IT कंपनियों के लिए भी अमेरिका का बाजार सिमट सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फैसला भारतीय इंजीनियर्स को यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और मिडिल ईस्ट जैसे बाजारों की ओर धकेल सकता है।
आगे क्या?
अब कंपनियों और सरकारों के बीच लॉबिंग तेज हो सकती है। भारतीय सरकार भी इस मुद्दे को राजनयिक स्तर पर उठा सकती है, क्योंकि लाखों भारतीय परिवारों का भविष्य इससे जुड़ा हुआ है। टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के लिए H-1B वीज़ा रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। नई फीस पॉलिसी ने न केवल विदेशी टैलेंट बल्कि अमेरिकी कंपनियों को भी गहरे संकट में डाल दिया है।
H-1B वीज़ा फीस को अचानक 1 लाख डॉलर करना सिर्फ इमिग्रेशन पॉलिसी में बदलाव नहीं बल्कि ग्लोबल टैलेंट फ्लो को झटका है। भारतीय प्रोफेशनल्स, जिन्होंने अमेरिका की टेक ग्रोथ में अहम भूमिका निभाई है, इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। अब सवाल यह है कि क्या यह फैसला कानूनी और राजनयिक चुनौतियों के बाद टिक पाएगा, या फिर अमेरिका को अपनी टेक इंडस्ट्री बचाने के लिए पीछे हटना पड़ेगा।
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