Posted by admin on 2025-09-26 11:11:25
नई दिल्ली. देश में एक नारा—“आई लव मोहम्मद”—ने अचानक राजनीति, समाज और कानून-व्यवस्था के बीच गहरी हलचल पैदा कर दी है। जहां मुस्लिम संगठन इसे धार्मिक भावनाओं की स्वाभाविक और शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति बता रहे हैं, वहीं कई राज्यों में पुलिस और प्रशासन इसे साम्प्रदायिक तनाव की वजह मानकर कार्रवाई कर रहे हैं। ताजा आंकड़े बताते हैं कि इस नारे को लेकर अब तक 21 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं, 1324 से ज्यादा लोग आरोपी बनाए गए हैं और 38 गिरफ्तारियां हुई हैं।
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—क्या धार्मिक प्रेम का प्रदर्शन वाकई साम्प्रदायिक खतरे में बदल रहा है, या फिर राजनीति और पुलिसिंग ने इसे अनावश्यक विवाद में बदल दिया है?
धार्मिक नारे पर कानूनी कार्रवाई: जमात-ए-इस्लामी का विरोध
जमात-ए-इस्लामी हिंद ने एक बयान जारी कर इस कार्रवाई की निंदा की है। संगठन के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने कहा कि, “शांतिपूर्ण धार्मिक अभिव्यक्ति सांप्रदायिक सद्भाव के लिए खतरा नहीं है। यह हमारा मौलिक अधिकार है, जो भारत की बहुलतावादी संस्कृति को और मजबूत करता है।”खान का आरोप है कि राजनीतिक हथकंडों और “सांप्रदायिक पुलिसिंग” की वजह से समाज में तनाव पैदा किया जा रहा है। उन्होंने इसे न सिर्फ खेदजनक बल्कि असंवैधानिक भी बताया। जमात ने साफ कहा है कि इस्लाम के अंतिम पैगंबर के प्रति प्रेम व्यक्त करना न तो किसी समुदाय के खिलाफ है और न ही इससे समाज का नैतिक ढांचा कमजोर होता है। इसके विपरीत, यह धार्मिक स्वतंत्रता और भारत की परंपरागत सहिष्णुता की अभिव्यक्ति है।
एपीसीआर के आंकड़े: यूपी से फैलकर कई राज्यों तक
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) के अनुसार, “आई लव मोहम्मद” नारे को लेकर विवाद की शुरुआत उत्तर प्रदेश के कानपुर से हुई थी। वहां दर्ज हुई एफआईआर के बाद यह अभियान धीरे-धीरे अन्य राज्यों तक फैल गया।
अब तक—
21 प्राथमिकी अलग-अलग राज्यों में दर्ज की गई हैं।
1324 मुसलमानों को आरोपी बनाया गया है।
38 लोगों की गिरफ्तारी हुई है।
संगठन का आरोप है कि यह कार्रवाई विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बना रही है।
कर्नाटक में बैनर से तनाव, पुलिस ने किया हालात काबू
24 सितंबर की रात कर्नाटक के दावणगेरे जिले में "आई लव मोहम्मद" लिखे पोस्टरों ने अचानक साम्प्रदायिक तनाव पैदा कर दिया।
घटना कैसे हुई?
कार्ल मार्क्स नगर इलाके में यह बैनर लगाया गया।
दूसरे समुदाय ने इसे हटाने की मांग की।
इसके बाद दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए और पथराव भी हुआ।
हालांकि, दावणगेरे की एसपी उमा प्रशांत ने तुरंत पुलिस बल भेजा और पांच मिनट में स्थिति पर काबू पा लिया। बाद में बैनर हटा दिए गए और अब इलाके में शांति बहाल है।
इस विवाद की जड़ में कुछ बुनियादी प्रश्न छिपे हैं— क्या धार्मिक प्रेम का प्रदर्शन आपराधिक कृत्य हो सकता है?
भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। ऐसे में पैगंबर मोहम्मद या किसी भी धार्मिक आस्था के प्रति प्रेम व्यक्त करना मौलिक अधिकार है।
क्या प्रशासन की कार्रवाई वास्तविक शांति बनाए रखने के लिए है, या राजनीतिक दबाव में?
आलोचकों का मानना है कि ऐसे नारे केवल तभी समस्या बनते हैं जब राजनीतिक दल या समूह उन्हें साम्प्रदायिक नजरिए से प्रचारित करते हैं।
सोशल मीडिया की भूमिका:
“आई लव मोहम्मद” अभियान तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। डिजिटल युग में धार्मिक नारों का यह प्रसार कई बार भावनाओं को भड़का सकता है।
स्थानीय बनाम राष्ट्रीय राजनीति:
यूपी और कर्नाटक जैसे राज्यों में यह विवाद स्थानीय मुद्दे से उठकर राष्ट्रीय स्तर पर बहस का विषय बन गया है। इससे साफ है कि चुनावी राजनीति भी इस बहस में छुपी हुई है।
अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक राजनीति
भारतीय राजनीति में धर्म लंबे समय से बहस का केंद्र रहा है। एक ओर, बहुसंख्यक राजनीति के नाम पर आक्रामक नारेबाजी अक्सर देखी जाती है, तो दूसरी ओर अल्पसंख्यक समुदाय जब अपनी धार्मिक पहचान जताता है, तो प्रशासनिक दमन का सामना करता है।
विश्लेषकों का मानना है कि यही असमानता भारत के सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रही है।
पुलिस और प्रशासन की चुनौती
कानून-व्यवस्था बनाए रखना प्रशासन का कर्तव्य है। लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ एक नारे या पोस्टर से शांति भंग हो जाती है?
विशेषज्ञों का मानना है कि अत्यधिक दमनकारी कार्रवाई उल्टा असर डाल सकती है। इससे न सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय में असुरक्षा की भावना पनपती है, बल्कि देश की वैश्विक छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।
आगे का रास्ता: संवाद ही समाधान
इस विवाद का हल केवल संवाद और संवेदनशील प्रशासनिक रवैये से ही निकल सकता है। धार्मिक नारों को अपराध घोषित करना समाधान नहीं है।
राजनीति से ऊपर उठकर प्रशासन को संतुलित रवैया अपनाना होगा।
धार्मिक संगठनों को भी जिम्मेदारी निभानी होगी कि उनके अभियान शांति और सद्भाव बनाए रखने की दिशा में हों।
नागरिक समाज की भूमिका भी अहम है—साम्प्रदायिक तनाव को फैलाने वाले किसी भी प्रयास का विरोध किया जाना चाहिए।
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