Posted by admin on 2025-09-12 11:57:47
आयुर्वेद में सदियों से ऐसी अनेक जड़ी-बूटियों का उल्लेख मिलता है, जो हमारी सामान्य जिंदगी में साधारण हरी सब्ज़ी की तरह प्रयोग में लाई जाती हैं, लेकिन उनके औषधीय गुण किसी वरदान से कम नहीं होते। इन्हीं में से एक है बथुआ। बथुए को आमतौर पर ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोग सर्दियों के मौसम में हरे साग के रूप में खाते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह साधारण दिखने वाला पौधा गंभीर से गंभीर रोगों को जड़ से खत्म करने की अद्भुत क्षमता रखता है। आचार्य बालकृष्ण के अनुसार बथुए का सही तरीके से सेवन करने पर यह कैंसर की गाँठ, लिवर की सूजन, पथरी, बवासीर, कब्ज, दाद, जुएं और दिल की बीमारी जैसे रोगों से बचाव और इलाज करने में बेहद कारगर है।
साधारण खरपतवार, असाधारण गुण
बथुए को आम भाषा में लोग खरपतवार समझते हैं। यह गेहूं और जौ के खेतों में अपने आप उग आता है और अक्सर किसान इसे बेकार मानकर फेंक देते हैं। लेकिन आयुर्वेद में इसे क्षारपत्र और अंग्रेजी में व्हाइट गूज़ फुट कहा गया है। बथुआ दो प्रकार का होता है—एक जिसमें लाल रंग की पत्तियाँ होती हैं और दूसरा जिसमें चौड़ी-बड़ी हरी पत्तियाँ होती हैं। दोनों ही प्रकार औषधीय दृष्टि से लाभकारी हैं।
बथुए की पत्तियों में कैल्शियम, पोटैशियम, विटामिन ए, लोहा और क्षार की भरपूर मात्रा होती है। यही कारण है कि इसे सर्दियों में साग-सब्ज़ी के रूप में खाने की परंपरा रही है।
शरीर की गांठों और कैंसर पर असरदार
आचार्य बालकृष्ण के अनुसार शरीर में किसी भी प्रकार की गांठ हो—चाहे वह सामान्य सूजन की हो या कैंसर के रूप में विकसित हो रही हो—बथुआ इसके इलाज में मददगार साबित हो सकता है। इसके लिए बथुए को जड़ सहित सुखाकर उसका पाउडर बना लें। फिर 10 ग्राम पाउडर को 400 ग्राम पानी में पकाएँ और जब यह उबालकर लगभग 50 ग्राम बच जाए तो छानकर उसका काढ़ा पीएँ। नियमित सेवन से गांठें धीरे-धीरे गलने लगती हैं और कैंसर के खतरे को भी काफी हद तक कम किया जा सकता है।
पथरी का रामबाण इलाज
पथरी के रोगियों के लिए भी बथुआ किसी वरदान से कम नहीं। बथुए के रस में शक्कर मिलाकर नियमित सेवन करने से पथरी गलकर मूत्रमार्ग से बाहर निकल जाती है। आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार कुछ ही दिनों में इसका असर दिखने लगता है।
लीवर की सूजन और मजबूती
बथुए का साग खाने से लीवर मजबूत होता है और सूजन की समस्या दूर होती है। आजकल के असंतुलित खानपान और प्रदूषण के कारण लोगों में लीवर से जुड़ी समस्याएँ आम हो गई हैं। ऐसे में बथुआ न केवल लिवर की कार्यक्षमता बढ़ाता है, बल्कि शरीर को विषैले तत्वों से भी मुक्त करता है।
अन्य चमत्कारी फायदे
बथुए का सेवन और प्रयोग कई अन्य रोगों में भी लाभकारी सिद्ध होता है:
बवासीर : बथुए को उबालकर उसका पानी पीने से बवासीर की पीड़ा कम होती है।
कब्ज : दो चम्मच बथुए का रस या इसका साग खाने से कब्ज दूर हो जाती है।
पेट के कीड़े : बथुए को उबालकर उसका पानी पीने से पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं।
दाद : बथुए के रस और तिल के तेल को गर्म करके तैयार किया गया तेल दाद पर लगाने से राहत मिलती है।
जुएं : बथुए के पत्तों को उबालकर ठंडे पानी से सिर धोने पर जुएं खत्म हो जाती हैं।
दिल की बीमारी : बथुए की लाल पत्तियों का रस निकालकर उसमें सेंधा नमक मिलाकर सेवन करने से हृदय रोगों में लाभ होता है।
जलन : शरीर के किसी हिस्से पर जलन हो तो बथुए की पत्तियों का लेप लगाने से तुरंत राहत मिलती है।
नकसीर : बथुए के रस की कुछ बूंदें पीने से नकसीर की समस्या दूर होती है।
आयुर्वेदिक दृष्टिकोण और आधुनिक महत्व
जहाँ एक ओर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान गंभीर रोगों के इलाज के लिए महँगी और कठिन प्रक्रियाएँ अपनाता है, वहीं आयुर्वेद प्रकृति से जुड़े ऐसे सरल और सहज उपाय प्रस्तुत करता है, जिन्हें हर कोई अपना सकता है। बथुआ इसी का एक उत्तम उदाहरण है। आज जब कैंसर जैसी घातक बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं और पथरी, कब्ज, लीवर की समस्याएँ आम हो चुकी हैं, तब बथुए जैसे पौधे को अपने दैनिक आहार में शामिल करना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी हो सकता है।
सावधानियाँ भी जरूरी
हालाँकि बथुआ अत्यधिक लाभकारी है, लेकिन इसे सही मात्रा में और सही तरीके से ही सेवन करना चाहिए। ज्यादा मात्रा में बथुआ खाने से पेट में गैस या हल्की जलन की समस्या हो सकती है। गर्भवती महिलाओं और छोटे बच्चों को इसका सेवन करने से पहले विशेषज्ञ से सलाह लेना उचित होगा।
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