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भारतीय 1रुपए का स्टैंडर्ड और देयता भारत सरकार फिर 2 रुपए से 2000रुपए तक का स्टैंडर्ड वो देयता RBI क्यों?

राष्ट्रीय

Posted by admin on 2025-10-24 13:31:22

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भारतीय 1रुपए का स्टैंडर्ड और देयता भारत सरकार फिर 2 रुपए से 2000रुपए तक का स्टैंडर्ड वो देयता RBI क्यों?

नई दिल्ली।  भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की स्वायत्तता और इसके वित्त मंत्रालय में संभावित विलय की चर्चा लंबे समय से भारतीय आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में गूंजती रही है। *RBI एक्ट, 1934* में समय-समय पर संशोधन हुए, लेकिन इसका पूर्ण निरसन या वित्त मंत्रालय में विलय कभी नहीं हुआ। विशेष रूप से नरेंद्र मोदी सरकार (2014 से अब तक) ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। यह समाचार लेख तथ्यात्मक स्रोतों, कानूनी प्रावधानों, और ऐतिहासिक, आर्थिक व राजनीतिक दृष्टिकोणों पर आधारित है। यह *1 रुपये के नोट की देयता भारत सरकार* और *2 रुपये से 2000 रुपये के नोटों की देयता RBI* के अधीन होने के कारणों को भी स्पष्ट करता है, जिसमें सरकारी, विशेषज्ञ, और मीडिया के दृष्टिकोण शामिल हैं।


 RBI की स्वायत्तता: ऐतिहासिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य

RBI एक्ट, 1934 के तहत  1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना हुई। ब्रिटिश काल में स्थापित इस संस्था का 1949 में राष्ट्रीयकरण हुआ, जिसके बाद यह पूरी तरह भारत सरकार के स्वामित्व में आ गई। RBI एक्ट की धारा 3 के तहत RBI को मौद्रिक नीति, मुद्रा प्रबंधन, और बैंकिंग नियमन का अधिकार प्राप्त है, जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति नियंत्रण, वित्तीय स्थिरता, और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।


कानूनी प्रावधान:

- धारा 7: सरकार को RBI के साथ परामर्श के बाद निर्देश जारी करने का सीमित अधिकार है, जिसका उपयोग दुर्लभ परिस्थितियों में हुआ, जैसे *2016 की नोटबंदी* में।

- धारा 22 और 26: RBI को 2 रुपये से 2000 रुपये तक के नोटों को जारी करने और उनकी देयता वहन करने का अधिकार है।

- 1 रुपये का नोट: मुद्रा और वित्त अधिनियम, 1861 और सिक्का अधिनियम, 1906 के तहत 1 रुपये का नोट और सिक्के भारत सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं, और उनकी देयता भी सरकार की होती है। यह परंपरा औपनिवेशिक काल से चली आ रही है, क्योंकि 1 रुपये का नोट सिक्कों के समान माना जाता है, जिसका प्रबंधन वित्त मंत्रालय करता है।

- 2 रुपये से 2000 रुपये के नोट: इनकी देयता RBI की होती है, क्योंकि ये उच्च मूल्य की मुद्राएँ हैं, जिनका प्रबंधन मौद्रिक नीति के तहत केंद्रीय बैंक करता है ताकि आर्थिक स्थिरता बनी रहे।


ऐतिहासिक विवाद:

- 2018 में तनाव: तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल के कार्यकाल में सरकार और RBI के बीच लाभांश हस्तांतरण, बिजली क्षेत्र को ऋण राहत, और मौद्रिक नीति पर असहमति देखी गई। उर्जित पटेल का इस्तीफा (दिसंबर 2018) इस टकराव का परिणाम माना जाता है।

- नोटबंदी (2016): सरकार और RBI के बीच समन्वय था, लेकिन आलोचकों ने इसे RBI की स्वायत्तता पर हमला बताया। फिर भी, RBI की वार्षिक रिपोर्ट (2016-17) के अनुसार, RBI ने अपनी स्वायत्तता बनाए रखी।


 मोदी सरकार के तहत RBI की स्वायत्तता

नरेंद्र मोदी सरकार (2014 से अब तक) के कार्यकाल में RBI पर राजनीतिक दबाव की खबरें सामने आईं, विशेष रूप से  2016-2019  के दौरान। सरकार ने कम ब्याज दरों, MSME और बिजली क्षेत्र को राहत, और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए दबाव डाला। 2018 में RBI एक्ट की धारा 7 के संभावित उपयोग की चर्चा ने स्वायत्तता पर सवाल उठाए, लेकिन इसका वास्तविक उपयोग नहीं हुआ। उर्जित पटेल के इस्तीफे के बाद शक्तिकांत दास (2018-2024) और फिर संजय मल्होत्रा (2024) की नियुक्ति को कुछ ने स्वायत्तता पर सवाल के रूप में देखा, क्योंकि मल्होत्रा वित्त मंत्रालय के पूर्व अधिकारी थे। हालांकि, कोई कानूनी विलय या RBI एक्ट में बड़ा बदलाव नहीं हुआ।


कानूनी और नीतिगत स्थिति:

- बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) एक्ट, 2020: इसने सहकारी बैंकों पर RBI के नियामक अधिकारों को मजबूत किया।

- 2025 में सुधार: RBI ने 9000 सर्कुलर निरस्त किए, जो प्रशासनिक दक्षता बढ़ाने का कदम था, न कि स्वायत्तता पर हमला।

- मौद्रिक नीति समिति (MPC): 2016 में गठित MPC ने मौद्रिक नीति को पारदर्शी और स्वायत्त बनाया, जिसमें सरकार और RBI के प्रतिनिधि शामिल हैं।


विशेषज्ञ दृष्टिकोण:

- अर्थशास्त्री जयति घोष का कहना है कि RBI की स्वायत्तता आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है, और विवाद नीतिगत असहमति से उत्पन्न हुए, न कि स्वायत्तता के उल्लंघन से।

- ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन (2019) ने 2018 के विवाद को "राजनीतिक हस्तक्षेप" बताया, लेकिन स्वीकार किया कि RBI की कानूनी स्वायत्तता बरकरार है।

- गेटवे हाउस जैसे थिंक टैंक का तर्क है कि कम ब्याज दरें विकास की गारंटी नहीं देतीं, और RBI की स्वायत्तता वैश्विक मानकों के अनुरूप है।

1 रुपये और अन्य नोटों की देयता: कानूनी और ऐतिहासिक कारण

1 रुपये का नोट:

- कानूनी आधार: मुद्रा और वित्त अधिनियम, 1861 और सिक्का अधिनियम, 1906 के तहत 1 रुपये का नोट और सिक्के भारत सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं। इसकी देयता सरकार की होती है, क्योंकि यह निम्न मूल्य की मुद्रा है और ऐतिहासिक रूप से सिक्कों के समान मानी जाती है।

- ऐतिहासिक संदर्भ: औपनिवेशिक काल में 1 रुपये का नोट सरकार द्वारा जारी होता था, और यह परंपरा स्वतंत्रता के बाद भी जारी रही।


2 रुपये से 2000 रुपये के नोट:

- कानूनी आधार: RBI एक्ट, 1934 की धारा 22 और 26 के तहत RBI को इन नोटों को जारी करने और उनकी देयता वहन करने का अधिकार है। ये उच्च मूल्य की मुद्राएँ हैं, जिनका प्रबंधन मौद्रिक नीति और मुद्रास्फीति नियंत्रण के लिए RBI करता है।

- कारण: RBI का मुद्रा प्रबंधन मौद्रिक नीति का हिस्सा है, जो आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है। 1 रुपये के नोट और सिक्कों का प्रबंधन वित्त मंत्रालय करता है, जो ऐतिहासिक और प्रशासनिक कारणों से है।


 RBI पर विदेशी नियंत्रण का मिथक

कुछ दावे RBI को बैंक ऑफ इंग्लैंड या अन्य विदेशी संस्थाओं से जोड़ते हैं, लेकिन यह तथ्यात्मक रूप से गलत है:

- 1949 का राष्ट्रीयकरण: RBI पूरी तरह भारत सरकार के स्वामित्व में है, जैसा कि RBI एक्ट, 1934 और RBI की वार्षिक रिपोर्ट (2024) में स्पष्ट है।

- सोना भंडार: भारत का कुछ सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटलमेंट्स में सुरक्षित रखा जाता है, लेकिन यह सुरक्षा, लागत, और वैश्विक व्यापार सुविधा के लिए है, न कि विदेशी नियंत्रण के लिए। RBI वार्षिक रिपोर्ट (2024) के अनुसार, भारत का 80% से अधिक स्वर्ण भंडार देश में ही है।

- वैश्विक मानक: फेडरल रिज़र्व (USA), बैंक ऑफ इंग्लैंड, और यूरोपियन सेंट्रल बैंक जैसे केंद्रीय बैंक सरकार के स्वामित्व में होते हैं, लेकिन स्वायत्त रहते हैं।


 वित्त मंत्रालय में विलय न होने के कारण

RBI को वित्त मंत्रालय में विलय करने का कोई आधिकारिक प्रस्ताव इतिहास में सामने नहीं आया। इसके प्रमुख कारण हैं:

1. आर्थिक स्थिरता: विलय से मौद्रिक नीति पर राजनीतिक दबाव बढ़ेगा, जिससे मुद्रास्फीति, निवेशक विश्वास, और वित्तीय स्थिरता को खतरा हो सकता है। IMF और विश्व बैंक स्वायत्त केंद्रीय बैंकों को आर्थिक स्थिरता का आधार मानते हैं।

2. वैश्विक मानक: अधिकांश देशों में केंद्रीय बैंक स्वायत्त होते हैं, जैसे फेडरल रिज़र्व, बैंक ऑफ जापान, और यूरोपियन सेंट्रल बैंक।

3. प्रशासनिक दक्षता: RBI मौद्रिक नीति संभालता है, जबकि वित्त मंत्रालय राजकोषीय नीति। दोनों की भूमिकाएँ अलग हैं, और विलय से प्रशासनिक जटिलताएँ बढ़ेंगी।

4. कानूनी ढांचा: RBI एक्ट, 1934 में हालिया संशोधन, जैसे बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) एक्ट, 2020, और 2025 में जमाकर्ता अधिकारों को मजबूत करने वाले बदलाव, ने RBI की स्वायत्तता को और सुदृढ़ किया। 2025 में 9000 सर्कुलर निरस्त किए गए, जो प्रशासनिक सुधार था।

5. मोदी सरकार की नीति: सरकार ने 2019 में 10 सार्वजनिक बैंकों का विलय किया, लेकिन RBI की स्वायत्तता को नहीं छुआ, क्योंकि यह अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम भरा होता।


भारतीय रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता भारत की आर्थिक स्थिरता की आधारशिला है। 1 रुपये के नोट की देयता भारत सरकार और 2 रुपये से 2000 रुपये के नोटों की देयता RBI के पास होने का आधार मुद्रा और वित्त अधिनियम, 1861 और RBI एक्ट, 1934 में निहित है। नरेंद्र मोदी सरकार के तहत नीतिगत विवाद हुए, लेकिन कोई कानूनी विलय या RBI एक्ट का निरसन नहीं हुआ। विदेशी नियंत्रण के मिथकों को RBI की वार्षिक रिपोर्ट (2024) और गेटवे हाउस जैसे स्रोत खारिज करते हैं। हालिया संशोधन (2025) ने RBI को और मजबूत किया। यदि भविष्य में कोई बदलाव होता है, तो यह संसद के माध्यम से होगा, लेकिन वर्तमान में ऐसा कोई संकेत नहीं है। यह समाचार तथ्यात्मक, कानूनी, और संतुलित दृष्टिकोणों पर आधारित है।


स्रोत:

- भारतीय रिज़र्व बैंक एक्ट, 1934
- मुद्रा और वित्त अधिनियम, 1861
- सिक्का अधिनियम, 1906
- RBI वार्षिक रिपोर्ट, 2024
- बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) एक्ट, 2020

- जयति घोष के लेख और साक्षात्कार
- ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन

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