Posted by admin on 2025-10-08 16:56:05
डिजिटल युग में भी कायम है भारतीय डाक का भरोसा
9 अक्तूबर को पूरी दुनिया में विश्व डाक दिवस मनाया जाता है, जो मानव समाज की संचार यात्रा के एक लंबे और गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है। वर्ष 1874 में स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक साथ मिलकर यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन की स्थापना की थी, ताकि वैश्विक स्तर पर डाक व्यवस्था को एक समान नियमों में बांधा जा सके। इसी ऐतिहासिक दिन को 1969 में जापान के टाकियो सम्मेलन में “विश्व डाक दिवस” के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। भारत ने इस संगठन की सदस्यता वर्ष 1876 में ग्रहण की और वह एशिया का पहला देश बना जिसने इस वैश्विक डाक संघ का हिस्सा बनकर अंतरराष्ट्रीय संचार के नए युग की शुरुआत की। भारत आज भी यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का प्रथम श्रेणी सदस्य है और अपने विशाल जनसंख्या आधार व अंतरराष्ट्रीय मेल ट्रैफिक के कारण इसकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
भारत में डाक विभाग का इतिहास ब्रिटिश शासन के दौर से जुड़ा है। 1766 में रॉबर्ट क्लाइव ने पहली संगठित डाक व्यवस्था की नींव रखी और 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने कोलकाता में पहला डाकघर खोला। 1854 में लॉर्ड डलहौजी ने एक राष्ट्रीय डाक सेवा की शुरुआत की और उसी वर्ष पहली बार भारत में डाक टिकट जारी किया गया। यह वह दौर था जब चिट्ठियों और संदेशों के आदान-प्रदान के लिए डाक विभाग ही एकमात्र माध्यम था। गांव से लेकर शहर तक हर व्यक्ति की जिंदगी में डाक विभाग का एक भावनात्मक और सामाजिक संबंध था। वह दौर जब डाकिया केवल चिट्ठी नहीं लाता था, बल्कि वह घर-घर उम्मीद, प्यार और खबरों की डोर भी पहुंचाता था। मशहूर शायर निदा फाजली ने इसी भावनात्मक जुड़ाव को शब्दों में पिरोते हुए लिखा था— “सीधा-सादा डाकिया जादू करे महान, एक ही थैले में भरे आंसू और मुस्कान।”
डाक विभाग केवल संदेशों का माध्यम नहीं था, बल्कि यह सामाजिक जीवन की आत्मा बन चुका था। गांवों में डाकिये का आना एक उत्सव जैसा होता था। बच्चे, बूढ़े और महिलाएं सभी बड़ी उत्सुकता से डाकिया के आने का इंतजार करते थे। वह अपने साथ किसी बेटे की चिट्ठी लाता था जो विदेश में काम कर रहा होता, या किसी मां को अपने बेटे के कुशल क्षेम की खबर सुनाता था। अनपढ़ महिलाएं डाकिये से ही अपनी चिट्ठियां पढ़वाती और लिखवाती थीं। अक्सर चिट्ठी पढ़ने वाले बच्चे को खुशी में गुड़ या पताशे देकर आभार जताया जाता था। यही वह मानवीय स्पर्श था जिसने डाक विभाग को हर घर का अपना संस्थान बना दिया।
समय के साथ जब शिक्षा और तकनीक का प्रसार हुआ तो डाक व्यवस्था भी आधुनिक होती चली गई। डाक विभाग ने मनीऑर्डर के माध्यम से घर-घर तक पैसे भेजने की सुविधा दी, जिससे लाखों परिवारों को आर्थिक सुरक्षा मिली। तार सेवा के माध्यम से आपात संदेश पहुंचाने का काम भी डाक विभाग ने बखूबी निभाया। 11 फरवरी 1855 को शुरू हुई तार सेवा ने दशकों तक लोगों को जोड़े रखा, जिसे 15 जुलाई 2013 को बंद कर दिया गया। इसके बाद डाक सेवाओं ने स्पीड पोस्ट जैसी आधुनिक सेवाओं की शुरुआत की, जिससे डाक की विश्वसनीयता और तेज़ी दोनों में वृद्धि हुई। 1 अक्तूबर 2025 से रजिस्टर्ड डाक सेवा को स्पीड पोस्ट में समाहित किया गया, ताकि एकीकृत और कुशल सेवा प्रणाली विकसित की जा सके।
15 अगस्त 1972 को डाक विभाग ने देश में पिन कोड प्रणाली लागू की, जिसने डाक वितरण को सुव्यवस्थित और सटीक बनाया। पिन कोड की शुरुआत ने न केवल पत्रों के वितरण को आसान बनाया बल्कि देश के हर कोने तक डाकघर की पहचान तय की। डाक विभाग ने देश को नौ भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित किया, जिनमें पहली आठ संख्याएं भौगोलिक क्षेत्रों को और नौवीं संख्या सेना की डाक सेवा को दर्शाती है। यह व्यवस्था आज भी पूरी दक्षता के साथ कार्य कर रही है।
भारतीय डाक ने केवल संचार माध्यम के रूप में नहीं, बल्कि एक सामाजिक संस्थान के रूप में भी खुद को स्थापित किया है। आज जबकि इंटरनेट, ईमेल, वाट्सएप और सोशल मीडिया ने पारंपरिक चिट्ठियों की जगह ले ली है, तब भी डाक विभाग की भूमिका खत्म नहीं हुई है। इसके विपरीत, समय के साथ उसने खुद को नई तकनीकों के अनुरूप ढाल लिया है। अब डाक विभाग सरकारी योजनाओं, बीमा सेवाओं, बैंकिंग और विभिन्न सामाजिक योजनाओं के दस्तावेजों के वितरण में अहम भूमिका निभा रहा है।
केंद्र सरकार ने डाक विभाग के अंतर्गत “इंडिया पोस्ट पेमेंट बैंक (आईपीपीबी)” की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य देश के हर नागरिक तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचाना है। यह बैंकिंग नेटवर्क देश का सबसे बड़ा ग्रामीण वित्तीय ढांचा बनने की दिशा में अग्रसर है। 11,000 से अधिक डाक कर्मचारी गांव-गांव जाकर लोगों को डिजिटल बैंकिंग, बीमा और वित्तीय साक्षरता की सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। इस पहल ने ग्रामीण भारत में आर्थिक समावेशन की नई दिशा खोली है।
विश्व डाक दिवस का उद्देश्य न केवल डाक सेवाओं के इतिहास को याद करना है, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था में इनके योगदान को भी समझना है। आज विश्वभर में 150 से अधिक देशों में इस दिवस को विविध तरीकों से मनाया जाता है। डाक सेवाएं अब केवल पत्र वितरण तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि पार्सल, ई-कॉमर्स लॉजिस्टिक्स, बीमा और वित्तीय लेनदेन का एक बड़ा केंद्र बन चुकी हैं। वैश्विक स्तर पर अब 55 से अधिक ई-पोस्टल सेवाएं सक्रिय हैं और भविष्य में यह संख्या और बढ़ने की संभावना है। यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन के आंकड़ों के अनुसार, विश्व की लगभग 82 प्रतिशत आबादी को डाक विभाग के माध्यम से घर-घर डिलीवरी का लाभ प्राप्त होता है।
स्वतंत्र भारत के निर्माण में भी डाक विभाग ने अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह विभाग न केवल संचार का माध्यम रहा है बल्कि विकास और जनसेवा का प्रतीक भी बना है। गांवों और कस्बों में डाकघरों ने आम नागरिकों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने का कार्य किया है। आज भी भारतीय डाक विश्वसनीयता और जनविश्वास का पर्याय है। तमाम तकनीकी परिवर्तनों, निजी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा और डिजिटल क्रांति के बावजूद डाक विभाग का अस्तित्व न केवल बना हुआ है बल्कि उसने अपने कार्यों से यह सिद्ध किया है कि परिवर्तन को अपनाना और समय के साथ आगे बढ़ना ही उसकी असली पहचान है।
विश्व डाक दिवस के अवसर पर जब हम भारतीय डाक विभाग की यात्रा पर नजर डालते हैं, तो यह स्पष्ट होता है कि यह केवल एक संस्था नहीं, बल्कि एक परंपरा, एक विश्वास और एक संवेदना का प्रतीक है। यह संस्था लाखों लोगों की भावनाओं, रिश्तों और संवाद की वाहक रही है। तकनीक चाहे जितनी भी आगे बढ़ जाए, लेकिन हाथ से लिखी चिट्ठियों की वह आत्मीयता और डाकिया के थैले की वह गर्माहट हमेशा हमारे समाज की स्मृतियों में जीवित रहेगी। यही कारण है कि आज भी भारतीय डाक अपने मूल सिद्धांत “जनसेवा के लिए संचार” को निभाते हुए देश के हर नागरिक तक पहुंचने की दिशा में निरंतर अग्रसर है।
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